Wednesday, January 8, 2014

एक एहसास

 एह्सास था मुझे , एह्साह था तुझे,
फिर क्यों सपनो के दीए अधूरे बुझे।

बीते दिनों की बातें सोने न दें रात भर,
तन्हाई के साये तले हम खो गए किधर।

बदल गया है शमां  न रहे अब वो गम,
खो गया वो ख्याल टुट गए सब भ्रम।

जो चाहा कर न सका
सुनता रहा दिल मेरा।

क्या कहें कैसे रहें दूर तुमसे हो गए,
कुछ हालत से तो कुछ खुद से मजबूर हो गए..
        
                                                                                          गौरव  कश्यप