Wednesday, March 26, 2014

"शायद .........अक्सर"


अक्सर मैं तुमको ख़ामोशी में सुनता हूँ ,
तुम कहो दिन भर कि छोटी-छोटी कहानियाँ।।

अक्सर तुम शरमा जाती हो... आज भी ,
तुम को जो खूबसूरत मैंने कह दिया।।

तुम ही सुबह हो मखमली सी धुप हो,
तुम हो तो मिट जाएँ गम कि परछाइयाँ।।

तुम संग उड़ता हुँ लेकर ख्वाबों का कारवां,
चल पड़ेंगे अंधेरो में संग ले ख्वाबों कि कश्तियाँ।।

कल ख्वाब जो देखा तन्हा-तन्हा तो रुआंसा हो गया,
शायद डरने लगा कि मैंने तुमको कहीँ खो ना दिया।।

शायद हम तुम कुछ मशरूफ़ थे खुद मे कुछ वक़्त से,
शायद है कुछ जो लब् कह न सके कि तुम बिन हम अधुरे।।

शायद तुम कहती नहीं जो है एक अनकहा 
शायद तुम सोचती हो मैंने वो सुन लिया।।
गौरव कश्यप