Wednesday, September 7, 2016

मंज़िल




बेताबी है, तन्हाई है, उफ ये कैसी मंजिल हैं...
चारो ओर सिर्फ मायूसी है ...जीना थोड़ा मुश्किल है...
खामोशी है, अंधियारा है, मजबुरी व्यापी साये है...
सुनी सुनी सी मेरी दुनिया है, वीरा़न सी मेरी महफिल है...

रुह को आराम कहाँ, चलो खुदा है खैर है...
इक जालिम के कब्जे मे ही सही, 
कैद नाजुक सा दिल मेरा है...
मेरी चाहत को दुनिया मे मुकां क्यो नहीं मिल पाया ...
क्या तुने मेरे दिल को बस दर्द के ही काबिल पाया है...
आएंगे न जाने कितनें तूफ़ान और किनारे तक
लहरों से लड़ती मेरी कश्ती  है... 
मेरी नजर से दुर साहिल है...