रूह जो कभी ज़िंदा थीं
आज जो ज़िंदा है मृत से बद्द्तर है
वह मृत हमसे कहीं बेहतर है
आँखें कभी नहीं सोती
सौम्य सी उसकी आँखें
आज दूर कहीं सितारों में खो सी गयी
आँखों में सिक्को का बिठाना
माटी को चेहरे पे बिखेरना
बड़े से पत्थर को उसका सिरहाना बनाना
सोचता हूँ क्या होगा
जब धरती उसे बहिष्कृत कर देगी
कोई बमवर्षा उसकी क़ब्र उजाड़ देगी
वह रूह वापसी करेगी
रूह कहीं हमसे बेहतर तो न होगी
डर है वह रूह सभी बातों से अन्ज़ान होगी ||
गौरव कश्यप