मसला न प्यार का हैं , न पॉवर का , न किसान का ,
न ज़मीन का, न गाँव कस्बे या शहर का … मसला है देश का
देश लोगो से बनता है, लोग, मतलब समूह … भीड़
और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता,
भीड़ को चेहरा देता है उसका नेता …….
तो जो चेहरा मेरा है , वही मेरे नेता का और मेरे देश का होगा
जब मैं आध्यात्मिक था तो देशभक्त और देशपुत्र था
जब विलासी हुआ तो राजा मिहिर बना
कमज़ोर पड़ा तो सिकंदर और टुटा तो बाबर कहलाया गया
जब मैंने व्यापार किया तो देश गुलाम हुआ ,
और बागी बना तो देश आज़ाद हुआ
जब आज़ाद हुआ तो मैं स्वार्थी हुआ …
स्वार्थी तो भ्रष्ट
भ्रष्ट तो धनवान
धनवान तो सफल
सफल तो प्रगतिवान
प्रगति ……. देश की प्रगति
देश की प्रगति हेतु मेरी व्यक्तिगत प्रगति अनिवार्य है
गौरव कश्यप