आवामी भीड़ से दुर अपने वजुद को तलाशती...
सैकड़ो किट-पतंगो से पल -पल रुबरु होती...
आने वाले कल को निहारती सहमी हुई सी....
पुरानी यादो के बक्सो मे लम्हे टटोलती फिर सोचती...
कुछ अधुरे अरमान बय़ान आंखो से करना चाहती...
अंबर से बरसते झरने मे खुद को खोने से बचाती...
उसके मिलने की आश मे दुर क्षितीज को ताकती...
मेरी ये नजरें हर भीड़ मे तुझे ही तलाशती...
-- गौरव कश्यप
Beautifully penned... :-)
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