Thursday, August 6, 2015

एक तुम … एक मैं


तुम चांदनी...तेरी रात हुँ मैं..
तेरी चाहत मे भटकता हुआ सा एक बादल मैं...
तुम्हारे दिल मे छिपे ज़ज्बातो का अल्फा़ज हुँ मैं ...
तु जिस्म रुह हुँ मैं....
तु जख्म .... मरहम हुँ मैं...
तु खुदा है मेरी ...तेरी इबादत हुँ मैं...
तु गुमसुम सी जब बैठी... तेरी  तन्हाई हुँ मैं...
मुझे क्यों खोजती है पगली तेरे भीतर ही हुँ मैं...
                                                     --गौरव कश्यप

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