Sunday, February 22, 2015

दिल-ए-नादान


दिल क्या करे 
हज़ारो की भीड़ में भी तन्हा रहे 
तन्हा खवाबो में चले 
बस उसे ही ढूँढता फिरे 
 
टकटकी सी लगाये हुए
रिमझिम बारिश की बूंदों को ताकना 
वृक्षों की शाखों और पत्तो पे बूंदों का नाचना 

नदियों के सरहाने बैठ 
किनारों को मिलाने की चाह
ये जो मेरे थे सहारे 
भंवर में खो से गये 

ये धड़कने थम सी गयी, 
लम्हें भी हम से हैंरान, 
गुजरी वो रातें रूह के बिन, 
साँसें भी बेचैन सी है,

धुँधलाते कुछ हसीं लम्हें 
तेरी बातों, तेरी यादों में जो गुजारें 
हम नादान फिर भी 
कसूरवार दिल को समझते रहें
 --गौरव कश्यप 
 

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