Saturday, January 2, 2016

तन्हा


तन्हा लोगो के शहर में तन्हा रहता हूँ मैं....
कभी खुद से छुपना चाहता हूँ
कभी सिर्फ खुद से मिलना चाहता हूँ
देर से सोता हूँ
देर से उठता हूँ
कोई खाना बना जाता है
कोई कपड़े धो देता है
मैं बस चलता रहता हूँ
ज़िन्दगी की कन्वेयर बेल्ट पे
एअरपोर्ट पे खो गए किसी सूटकेस की तरह अकेला
कभी कभी बड़ी खूबसूरत लगती है ये तन्हाई
कभी कभी जैसे कातिल की निगाहों से मुझसे बात करती है

शिकायत बहुत करता हूँ मैं
आज बैठा हूँ खिडक़ी के पास अदरक की चाय का प्याला लेकर
जाने कितने सालों से इतने इत्मिनान से अपने साथ ही नहीं बैठा
जाने कितने दिनों बाद अपने दोस्त इस शहर की आवाजें सुन रहा हूँ 
 सड़क पे बेतरति.. बेमक़सद चलती गाड़ियाँ
बीवियों का आर्डर की जल्दी आना बच्चों की हँसी 

लगता हैं कितनी सदियाँ बीत गयी
मुझ जैसे लेट लतीफ़ आलसियों ने सुबह का हिंदुस्तान तो जैसे देखा ही नहीं

घर से दूर सा हो गया हूँ अक्सर फोन पे बात करता हूँ
माँ ने SMS करना भी सिख लिया हैं
कभी कभी अचानक फ़ोन देख मुस्करा पड़ता हूँ
माँ का मैसेज आता है "Beta How are You?"..
अपना मुल्क सचमुच बदल रहा है मेरे दोस्त
माँ का SMS अंग्रेजी में 

एक टाइम था जब न फ़ोन था.. ना SMS
डॉ की क्लीनिक की तरह 2 मिनट बात करने के लिए PCO में इन्तजार करना पड़ता था
एक समय वो भी था जब अंतर्देशीय पत्र (Inland latter) पे चिट्ठी लिखा करते थे
अक्सर सोचता हूँ क्या मैं इतना बदल गया
कि ये दुनिया ही बदल गयी
मैं अगर अपने माज़ी (Past) से मिलता
और उससे कुछ कहता कि मेरी बीती हुई ज़िन्दगी में कुछ बदल दे तो क्या होता ?
 --गौरव कश्यप

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