एह्सास था मुझे , एह्साह था तुझे,
फिर क्यों सपनो के दीए अधूरे बुझे।
बीते दिनों की बातें सोने न दें रात भर,
तन्हाई के साये तले हम खो गए किधर।
बदल गया है शमां न रहे अब वो गम,
खो गया वो ख्याल टुट गए सब भ्रम।
जो चाहा कर न सका
सुनता रहा दिल मेरा।
क्या कहें कैसे रहें दूर तुमसे हो गए,
कुछ हालत से तो कुछ खुद से मजबूर हो गए..
गौरव कश्यप
Bohot khoob :)
ReplyDeleteHoly mother of poetry this is deep!!
ReplyDeleteBas bhauji kabhi kabhi koshish ho jati hai
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