Sunday, January 29, 2017

तुम

तू 
कभी तूफ़ान हैं 
कभी ख़ामोश  हैं 
क्यों तू इतनी परेशां हैं 
अपनी ही चाल  पे 
अपने ही सवाल पे 
क्योँ तू इतनी हैरान है 
उलझन जो है तेरी 
मुझको तू बतला दे 
वक़्त बेईमान हैं 
रहता हूँ मैं तो हर पल साथ तेरे 
कटते  हैं मेरे संग दिन रात तेरे 
फिर हाल से तू दिल के मेरे 
ऐसे अनजान है 
क्यों सहमी सी तू क्यों रूठी हुई 
ग़म के मौसम मेहमान है 
तेरा मेरा रिश्ता है जो गहरा बड़ा
फिर पेश आती है तू क्यों इस तरह 
क्या हैं वजह तू मुझको बता 
सुनने का अरमान है तू बता 
खिज़ा है तू कभी 
कभी तू बहार है 
उलझन जो है तेरी 
मुझको तू बतला दे 
वक़्त बेईमान हैं 

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