Friday, May 26, 2017

तुम सिर्फ मेरी हो

 कश्मकश है
इज़हार कैसे करूँ
बयां कैसे करूँ
उसे मनाना क्यूँ
जब वो रूठी ही नहीं
उसकी ख़ामोशी जान ले जाती है
उसके एक मैसेज की आस
घंटो में सालों का इंतज़ार
उस ज़माने की तलाश में
जब ख़ामोशी को इक़रार
ना को हाँ समझा जाता
कैसी इकीसवीं सदी
उसकी ना को ना समझ
अध्याय समाप्त घोषित

उसका मन
ग्रहों की दशा
घर की दशा
बंद लिफाफा
खुला आसमां
आज़ाद है तू
उड़ान भर
मन का समंदर था
सफर था
हुनर था
शहर था
सहर थी
और सपनों में
वो मेरी है
सिर्फ मेरी है
पैर भी सिर्फ मेरे ही
चले हैं लगातार
बीसियों बेड़ियों के बावजूद
रास्ते की तलाश में
रास्ता बनाते हुए
तेरी चाहत में
तेरी आस मे
कि तू मेरी है
सिर्फ मेरी है

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