Sunday, August 27, 2017

कश्मक़श

शायद कुछ कहना चाहती हैं
उसका नम् आँखों से निहारना
पलकें झपकाएं बिना एक टक
  कहे बगैर पुरी कहानी बयाँ कर जाना
मन में भूचाल उठाती बेचैन छुअन
आज उसकी बातूनी निगाहों में
ख़ामोशी व्याप्त हैं
एक लफ्ज़ मेरा "क्या हुआ"
उसकी पलकों का इक वारी झपकना
मोतीयों का गालो पे सरकना
दिल सिहर सा गया
उस इक पल का ठहर सा जाना
ख़ामोश लब
गर्म सांसें
जहन में सवालों का सुनामी
नज़रों का फेर
कुछ कहने की जद्दोजहद

दिल में बसा रखुँ तुझें
सारी सारी रात किया तेरा इंतज़ार
रातें मेरी जान कर दी तेरे नाम
तुम साथ हो
फिर भी न जाने कहाँ गुम हो
तू ही चैन मेरा
तुझसे दूर अब न रहना
  कुछ तो
भरोसा कर
सारी ज़िन्दगी लिख दूँ तेरे नाम
जो तू होए मेरे साथ
जैसे बादल और बरसात
तुझपे हो शुरू और खत्म मेरी हर बात

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